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असुर, दैत्य, दानव और राक्षस मे क्या फर्क है? लेखक : नीलाभ वर्मा







सुर का पर्यायवाची (Synonym) शब्द है - देवता, देव, अमर, आदित्य, अमर्त्य, दैवत!

"जो सुर नही है वो असुर है।" अर्थात - जो कोई भी देवता नही है वो सभी असुर कहलाते हैं।

किंतु इस वाक्य में "देवता" का अर्थ बहुत व्यापक है।

मूल रूप से देवता केवल 12 हैं जिन्हें हम आदित्य कहते हैं। महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री अदिति के गर्भ से उत्पन्न 12 पुत्र ही आदित्य अथवा देवता कहलाते हैं। किन्तु यहाँ देवता का अर्थ सभी 33 कोटि देवता, उप-देवता, यक्ष, गन्धर्व इत्यादि है। ये सभी सम्मलित रूप से "सुर" कहलाते हैं। तो इस प्रकार दैत्य, दानव एवं राक्षस को भी हम असुर कह सकते हैं। सदैव स्मरण रखें कि असुर कोई अलग जाति नही अपितु उन सभी जातियों के लिए एक प्रतीकात्मक शब्द है जो सुर अर्थात देवता नही हैं।

"असुर" एक प्रतीकात्मक शब्द है। अन्य तीनों - मतलब "दैत्य, दानव एवं राक्षस", ये असुरो की अलग अलग जातियाँ हैं।

इन सभी के पिता मरीचि पुत्र महर्षि कश्यप हैं। महर्षि कश्यप ने ब्रह्मपुत्र प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियाँ उत्पन्न हुई। ये तीनों भी उन्ही में से एक हैं। आइये इन्हें संक्षेप में जान लेते हैं।

दैत्य:

महर्षि कश्यप और दक्ष की ज्येष्ठ पुत्री दिति के पुत्र दैत्य कहलाये।
इस प्रकार ये देवताओं (आदित्यों) के बड़े भाई हुए। कश्यप और दिति के दो पुत्र - हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष हुए जहाँ से दैत्य जाति की शुरूआत हुई।

इन्ही के गुरु भृगुपुत्र शुक्राचार्य थे। इन दोनों की होलिका नामक एक पुत्री भी हुई। हिरण्याक्ष का वध भगवान वराह ने किया। हिरण्याक्ष का पुत्र ही कालनेमि था जिसने द्वापर तक श्रीहरि के सभी अवतारों से प्रतिशोध लिया और बार बार उनके हाथों मारा गया।

बड़े भाई हिरण्यकशिपु के सबसे छोटे पुत्र प्रह्लाद थे जो महान विष्णु भक्त हुए। उन्ही को मारने के प्रयास में होलिका मारी गयी। होलिका का पुत्र स्वर्भानु था जिसे हम राहु केतु के नाम से जानते हैं। अंत में अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नारायण ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।

प्रह्लाद के पुत्र विरोचन हुए और विरोचन के पुत्र दैत्यराज बलि हुए। इन्ही बलि को श्रीहरि ने वामन रूप लेकर पराभूत किया और पाताल का राज्य दे दिया। इन बलि के पुत्र महापराक्रमी बाण हुए जो महान शिवभक्त हुए। कालांतर में इन्हें श्रीकृष्ण ने परास्त किया और इनकी पुत्री उषा श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से ब्याही गयी। बलि की बहन वज्रज्वला रावण के भाई कुम्भकर्ण से ब्याही गयी। इनके कुल का भी अनंत विस्तर हुआ।

दानव:

ये दैत्यों और आदित्यों के छोटे भाई थे जिनकी उत्पत्ति महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री दनु से हुई। दानवों के 114 मुख्य कुल चले जिनमें से 64 सबसे प्रमुख माने जाते हैं।

ये आकर में बहुत बड़े होते थे और बहुत बर्बर माने जाते थे। ये दैत्य और राक्षसों की भांति उतने सुसंस्कृत नही होते थे। पहली पीढ़ी के दानवों में विप्रचित्ति प्रमुख है जो होलिका का पति था। मय दानव को तो सभी जानते हैं जो असुरों के शिल्पी थे। इन्ही की पुत्री मंदोदरी रावण की पट्टमहिषी थी।

इसके अतिरिक्त कालिकेय दानवों का वंश भी बहुत प्रसिद्ध था। कालिकेय कुल में जन्मा विद्युतजिव्ह ही रावण की बहन शूर्पणखा का पति था। बाद में रावण ने युद्ध में उसका वध कर दिया और शूर्पणखा को दंडकवन का राज्य प्रदान किया। दानवों में वृषपर्वा का नाम भी बहुत प्रसिद्ध है जो ययाति की दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा के पिता थे।

राक्षस:

ये सभी असुरों में सबसे सुसंस्कृत और विद्वान माने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति की दो कथा प्रसिद्ध है।

एक कथा के अनुसार महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री सुरसा के पुत्र ही राक्षस कहलाये।

हालांकि राक्षसों की उत्पत्ति की दूसरी कथा ही अधिक मान्य है जिसके अनुसार, ब्रह्मा जी के क्रोध से हेति और प्रहेति नामक दो असुरों का जन्म हुआ और वही से राक्षस वंश की शुरुआत हुई।

प्रहेति तपस्वी बन गया और हेति ने यमराज की बहन भया से विवाह किया जिससे उसे विद्युत्केश नामक पुत्र प्राप्त हुआ। विद्युत्केश की पत्नी सलकंटका थी जिससे उसे सुकेश नामक पुत्र हुआ, जिसे उसने त्याग दिया। तब माता पार्वती ने उसे गोद ले लिया और वो शिव पुत्र कहलाया।

सुकेश ने देववती से विवाह किया जिससे उसे तीन पुत्र प्राप्त हुए - माल्यवान, सुमाली एवं माली।

सुमाली के 10 पुत्र और 4 पुत्रियां हुई जिनमें से एक कैकसी थी।

कैकसी ने ब्रह्मा के पौत्र और महर्षि पुलस्त्य के पुत्र "विश्रवा" से विवाह किया जिससे रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण पैदा हुए।

रावण की दो पत्नियों - मंदोदरी और धन्यमालिनी से 7 पुत्र हुए जिनमें मेघनाद ज्येष्ठ था।

कुम्भकर्ण के वज्रज्वला से कुम्भ एवं निकुम्भ नामक पुत्र हुए। उसनें एक विवाह विराध राक्षस की विधवा कर्कटी से भी किया जिससे भीम नामक पुत्र हुआ। इसी पुत्र को मारकर भगवान शंकर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए।

विभीषण की पत्नी सरमा से एक पुत्री "त्रिजटा" हुई।

कैकसी की एक पुत्री शूर्पणखा हुई जो विद्युतजिव्ह से ब्याही जिसका वध रावण ने कर दिया। दुर्भाग्य से विभीषण को छोड़ सभी राक्षसों का वध लंका युद्ध में हो गया।

यहाँ आप ये देखेंगे कि दैत्य, दानव और राक्षसों के कुल में आपसी विवाह तो हुए ही, साथ ही इनके कुल की कन्याओं ने मानवों से भी विवाह किया।

श्रीकृष्ण का पड़पोता वज्र भी माता की ओर से दैत्यकुल का ही था।

ये केवल संक्षेप में तीनों कुलों का वर्णन है। इसके अतिरिक्त भी इनका अनंत विस्तार हुआ। आशा है ये जानकारी आपको पसंद आई होगी। जय ब्रह्मदेव।

नीलाभ वर्मा (संस्थापक: धर्म संसार ब्लॉग)
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